Piles cure Delhi | Ghaziabad

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Prakash Medical centre is established for treating patients suffering from ano- rectal diseases like Piles, fistula/sinus, Fissure, Pilonidal Sinus etc, by Ayurvedic herbs and kshar sutra therapy. The centre is headed by Dr. Amit Kumar Sharma from India's one of the best Ayurvedic College(R.G.Govt. Post graduate Ayurvedic college Paprola) which is specially renowned for its deptt. of shalya chikitsa and kshar sutra.

बवासीर का प्रभावी हर्बल उपचार

इस बीमारी को अर्श, पाइस या मूलव्याधि के नाम से भी जाना जाता है। इस रोग में गुदा की भीतरी दीवार में मौजूद खून की नसें सूजने के कारण तनकर फूल जाती हैं। इससे उनमें कमजोरी आ जाती है और मल त्याग के वक्त जोर लगाने से या कड़े मल के रगड़ खाने से खून की नसों में दरार पड़ जाती हैं और उसमें से खून बहने लगता है।

बवासीर की समस्या | प्रकार | बवासीर का हर्बल उपचार

कारण-कुछ व्यक्तियों में यह रोग पीढ़ी दर पीढ़ी पाया जाता है। अतः अनुवांशिकता इस रोग का एक कारण हो सकता है। जिन व्यक्तियों को अपने रोजगार की वजह से घंटों खड़े रहना पड़ता हो, जैसे बस कंडक्टर, ट्रॉफिक पुलिस, पोस्टमैन या जिन्हें भारी वजन उठाने पड़ते हों,- जैसे कुली, मजदूर, भारोत्तलक वगैरह, उनमें इस बीमारी से पीड़ित होने की संभावना अधिक होती है। कब्ज भी बवासीर को जन्म देती है, कब्ज की वजह से मल सूखा और कठोर हो जाता है जिसकी वजह से उसका निकास आसानी से नहीं हो पाता मलत्याग के वक्त रोगी को काफी वक्त तक पखाने में उकडू बैठे रहना पड़ता है, जिससे रक्त वाहनियों पर जोर पड़ता है और वह फूलकर लटक जाती हैं। बवासीर गुदा के कैंसर की वजह से या मूत्र मार्ग में रूकावट की वजह से या गर्भावस्था में भी हो सकता है।
बवासीर मतलब पाइल्स यह रोग बढ़ती उम्र के साथ जिनकी जीवनचर्या बिगड़ी हुई हो, उनको होता है। जिन लोगों को कब्ज अधिक रहता हो उनको यह आसानी से हो जाता है। इस रोग में गुदा द्वार पर मस्से हो जाते है। जो सुखे और फुले दो प्रकार के होते है। मल विसर्जन के वक्त इसमें असहनीय पीड़ा होती है तथा खून भी निकलता है इससे रोगी कमजोर हो जाता है। बवासीर को आधुनिक सभ्यता का विकार कहें तो कॊई अतिश्योक्ति न होगी । खाने पीने मे अनिमियता , जंक फ़ूड का बढता हुआ चलन और व्यायाम का घटता महत्व , लेकिन और भी कई कारण हैं बवासीर के रोगियों के बढने में ।
बवासीर के प्रकार
खूनी बवासीर
खूनी बवासीर में किसी प्रक़ार की तकलीफ नही होती है केवल खून आता है। पहले पखाने में लगके, फिर टपक के, फिर पिचकारी की तरह से सिफॅ खून आने लगता है। इसके अन्दर मस्सा होता है। जो कि अन्दर की तरफ होता है फिर बाद में बाहर आने लगता है। टट्टी के बाद अपने से अन्दर चला जाता है। पुराना होने पर बाहर आने पर हाथ से दबाने पर ही अन्दर जाता है। आखिरी स्टेज में हाथ से दबाने पर भी अन्दर नही जाता है।
बादी बवासीर
बादी बवासीर रहने पर पेट खराब रहता है। कब्ज बना रहता है। गैस बनती है। बवासीर की वजह से पेट बराबर खराब रहता है। न कि पेट गड़बड़ की वजह से बवासीर होती है। इसमें जलन, ददॅ, खुजली, शरीर मै बेचैनी, काम में मन न लगना इत्यादि। टट्टी कड़ी होने पर इसमें खून भी आ सकता है। इसमें मस्सा अन्दर होता है। मस्सा अन्दर होने की वजह से पखाने का रास्ता छोटा पड़ता है और चुनन फट जाती है और वहाँ घाव हो जाता है उसे डाक्टर अपनी जवान में फिशर भी कहते हें। जिससे असहाय जलन और पीडा होती है। बवासीर बहुत पुराना होने पर भगन्दर हो जाता है। जिसे अंग़जी में फिस्टुला कहते हें। फिस्टुला प्रक़ार का होता है। भगन्दर में पखाने के रास्ते के बगल से एक छेद हो जाता है जो पखाने की नली में चला जाता है। और फोड़े की शक्ल में फटता, बहता और सूखता रहता है। कुछ दिन बाद इसी रास्ते से पखाना भी आने लगता है। बवासीर, भगन्दर की आखिरी स्टेज होने पर यह केंसर का रूप ले लेता है। जिसको रिक्टम केंसर कहते हें। जो कि जानलेवा साबित होता है।


 बवासीर की समस्या | प्रकार | बवासीर का हर्बल उपचार
बवासीर के कारण
कुछ व्यक्तियों में यह रोग पीढ़ी दर पीढ़ी पाया जाता है। अतः अनुवांशिकता इस रोग का एक कारण हो सकता है। जिन व्यक्तियों को अपने रोजगार की वजह से घंटों खड़े रहना पड़ता हो, जैसे बस कंडक्टर, ट्रॉफिक पुलिस, पोस्टमैन या जिन्हें भारी वजन उठाने पड़ते हों,- जैसे कुली, मजदूर, भारोत्तलक वगैरह, उनमें इस बीमारी से पीड़ित होने की संभावना अधिक होती है। कब्ज भी बवासीर को जन्म देती है, कब्ज की वजह से मल सूखा और कठोर हो जाता है जिसकी वजह से उसका निकास आसानी से नहीं हो पाता मलत्याग के वक्त रोगी को काफी वक्त तक पखाने में उकडू बैठे रहना पड़ता है, जिससे रक्त वाहनियों पर जोर पड़ता है और वह फूलकर लटक जाती हैं। बवासीर गुदा के कैंसर की वजह से या मूत्र मार्ग में रूकावट की वजह से या गर्भावस्था में भी हो सकता है।


बवासीर के लक्षण
बवासीर का प्रमुख लक्षण है गुदा मार्ग से रक्तस्राव जो शुरूआत में सीमित मात्रा में मल त्याग के समय या उसके तुरंत बाद होता है। यह रक्त या तो मल के साथ लिपटा होता है या बूंद-बूंद टपकता है। कभी-कभी यह बौछार या धारा के रूप में भी मल द्वारा से निकलता है। अक्सर यह रक्त चमकीले लाल रंग का होता है, मगर कभी-कभी हल्का बैंगनी या गहरे लाल रंग का भी हो सकता है। कभी तो खून की गिल्टियां भी मल के साथ मिली होती हैं
  • मलद्वार के आसपास खुजली होना
  • मल त्याग के समय कष्ट का आभास होना
  • मलद्वार के आसपास पीडायुक्त सूजन
  • मलत्याग के बाद रक्त का स्त्राव होना
  • मल्त्याग के बाद पूर्ण रुप से संतुष्टि न महसूस करना

पाईलेप्सोल हर्बल कैप्सूल
 PIles Cure पाईलेप्सोल हर्बल कैप्सूल बवासीर के लिए एक हर्बल दवा है. यह हर्बल उपचार अधिक गुणकरी है और गुदा में नसों की दीवारों की लोच में सुधार करता है. पाईलेप्सोल कैप्सूल भी पाचन कार्य में सुधार करता है और कब्ज तथा मल के साथ जो रक्त निकलता है उसके निलालने को समाप्त करता है. इसका प्रयोग आंतरिक और बाह्य समस्याओं को रोकने के लिए किया जाता है.
पाईलेप्सोल हर्बल कैप्सूल एक जड़ी बूटीयों का गठन है जो एक लंबे समय की खोज के बाद हासिल की गयी है यह मल के साथ रक्त स्राव व बवासीर के घाव की राहत के लिए जड़ी बूटियों का एक मिश्रण है. यह एक प्रभावशाली गुणवत्ता और सुरक्षित उत्पाद के बाद कई रसायन तथा भस्म के मिश्रण से तैयार किया गया है. इसको रक्त स्राव बवासीर, सूखी बवासीर, लुंज घाव के लिए मुख्य चिकित्सकीय दवा के रूप में उपयोग करें.
पाईलेप्सोल हर्बल कैप्सूल बवासीर के निश्चित इलाज के लिए पूर्ण और सही दवा तैयार है यह दोनों तरह की बवासीर में लाभकारी है यह मलद्वार के आसपास खुजली होने तथा मल त्याग के समय कष्ट का आभास होने का सुनिश्चित इलाज है यह मलद्वार के आसपास पीडायुक्त सूजन को समाप्त करता है यह मल्त्याग के बाद पूर्ण रुप से संतुष्टि महसूस करता है! पाईलेप्सोल कृत्रिम परिरक्षकों, रसायन, चीनी और शराब से मुक्त है !

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4 comments:


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